Insaniyat Shayari- पहले ज़मीं बँटी फिर घर भी बँट गया
पहले ज़मीं बँटी फिर घर भी बँट गया, इंसान अपने-आप में कितना सिमट गया !! इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई कहाँ, साए तो हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ? मेरी जबान के मौसम बदलते रहते हैं, मैं तो आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना !! आइना कोई ऐसा बना दे, ऐ खुदा जो, जो …
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